भ्रष्टाचार के अतल कुएँ में गिरा हुआ समाज
और देश पर अकर्मण्य, लोभी, कापुरुषों का राज
शिक्षा व्यवस्था ऐसी, कि स्वदेश से घृणा, पलायनवाद
और इतिहास को नकारना - इनमें ही मिलता है
आज के तथाकथित "शिक्षितों" को स्वाद
सत्य का पक्ष लेना अब बन रहा है अपवाद,
पक्षपाती राजनैतिक विज्ञापन कहलाता है अब संवाद
तथ्य की अब किसे फिक्र,
जब बिक रहा है सस्ता बौद्धिक आतंकवाद
छद्म युद्ध छिड़ा हुआ है अब भी,
पर विगतों की किसे याद?
एक और है असहिष्णु धर्मावलम्बियों का सदियों से
चला आ रहा भारत पर अत्याचार
दूसरी ओर साम्यवाद के नाम पर वर्षों से लोग
कर रहे हैं नरसंहार
प्रतिपल हो रही है हत्या देश के हितों की
पर चक्षुओं को उदारवाद के चश्मे से ढके हुए हैं 'बुद्धिजीवी'
उठ खड़ा हुआ है देश को तोड़ने के लिए
उद्यत लोगों का एक वर्ग
भूल गए हैं ये भूमि अपनी ही धरोहर है,
जो कभी था पृथ्वी पर स्वर्ग
मन इन दुर्भावनाओं से आज आक्रान्त है
चारों ओर देशवासियों की उपेक्षा से उद्विग्न है
अब लगता है बस कहने को ही देश स्वतंत्र है ,
60 वर्षों में कुछ नहीं बदला, हाय यह कैसा गणतंत्र है!
और देश पर अकर्मण्य, लोभी, कापुरुषों का राज
शिक्षा व्यवस्था ऐसी, कि स्वदेश से घृणा, पलायनवाद
और इतिहास को नकारना - इनमें ही मिलता है
आज के तथाकथित "शिक्षितों" को स्वाद
सत्य का पक्ष लेना अब बन रहा है अपवाद,
पक्षपाती राजनैतिक विज्ञापन कहलाता है अब संवाद
तथ्य की अब किसे फिक्र,
जब बिक रहा है सस्ता बौद्धिक आतंकवाद
छद्म युद्ध छिड़ा हुआ है अब भी,
पर विगतों की किसे याद?
एक और है असहिष्णु धर्मावलम्बियों का सदियों से
चला आ रहा भारत पर अत्याचार
दूसरी ओर साम्यवाद के नाम पर वर्षों से लोग
कर रहे हैं नरसंहार
प्रतिपल हो रही है हत्या देश के हितों की
पर चक्षुओं को उदारवाद के चश्मे से ढके हुए हैं 'बुद्धिजीवी'
उठ खड़ा हुआ है देश को तोड़ने के लिए
उद्यत लोगों का एक वर्ग
भूल गए हैं ये भूमि अपनी ही धरोहर है,
जो कभी था पृथ्वी पर स्वर्ग
मन इन दुर्भावनाओं से आज आक्रान्त है
चारों ओर देशवासियों की उपेक्षा से उद्विग्न है
अब लगता है बस कहने को ही देश स्वतंत्र है ,
60 वर्षों में कुछ नहीं बदला, हाय यह कैसा गणतंत्र है!