कुछ अधूरे ख्वाब, कुछ अनकही बातें
समय की परिधि से परे कुछ अंतहीन क्षण
क्यों मुझे आज पुकार रहे हैं?
एक निःशब्द निमंत्रण, एक अतुल्य आकर्षण
ह्र्दय में बसी किसी की मधुर छवि
क्यों मुझे आज दुर्बल कर रही है?
कुछ नूतन स्मृति चिह्न, कुछ धूमिल दृश्य
किसी की उपस्थिति का अकारण आभास
क्यों मुझे आज व्याकुल कर रहा है?
मन आज नियंत्रण से बाहर क्यों?
जब मंज़िलें और भी हैं, फिर
मेरे सम्मुख वही एकमात्र लक्ष्य क्यों?
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2 comments:
कविता अच्छी लगी । अब मन क्यों कुछ करता है बताएगा तो कभी नहीं ।
घुघूती बासूती
बढ़िया है। घुघूती बासूती की बात का जवाब दिया जाये!
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