Thursday, March 24, 2011

शीत से वसंत

प्रातःकाल, अर्ध-जागृत लोचन
व्यतीत समय, विस्मित मन
प्रतिदिन, मानो एक मिश्रण
कुछ नूतन, कुछ पुरातन 
  
हिमाच्छादित पर्वत शिखर
जैसे दे रहे हों निमंत्रण,
स्वच्छ, नीला गगन
और कुछ घुमंतू श्वेत बादल
टहनियों पे सज्जित नवजात कोंपल
सुगन्धित समीर, कुछ गीत सरल   


गतिमान त्रुटिहीन कालचक्र,
मध्यान्न, फिर अपराह्न का आगमन  

धुप का नरम स्पर्श 
क्षणिक सुख, अस्थिर हर्ष

ज्योत्स्ना-स्नात काया ,
पर अतृप्त ह्रदय, 
अगोचर मन,
ढूंढे प्रश्रय      

पुनः पुष्पित पृथ्वी,
और प्रकृति का पुनर्जन्म
लाता एक विचार सतत
कि जीवन
अनवरत, समय अनंत
कभी शीत, कभी वसंत 

- तापस, २३ मार्च २०११ 

Thursday, March 10, 2011

नई सुबह

एक नई सुबह
सूरज की पीली किरणें 
रौशन सारा जहाँ 

पर मन में अँधेरे

छनी हुई धुप
पलकों पे प्रलेप
यौवन का दिन एक और
विस्मृत होने को तैयार 



पक्षियों का कलरव 
पड़ोस में शोर
पर उसकी अंतर्ध्वनि मूक
या फिर अंतरात्मा वधिर

सुबह नयी,
दिन पुराना
जग भी वैसा
वह भी पहले जैसा !