Saturday, June 4, 2011

छल-कपट

जिंदगी के उलझे हुए पल
क्यों देते मन को छल
धोखा कभी खोयी नैनों का,
कभी पिपासु ह्रदय का
चिर असंतुष्ट आत्मा
क्यों मचाये कोलाहल
अगणित नश्वर पल
क्यों देते मन को छल ?

Friday, June 3, 2011

बारिश की एक सुबह

हल्की बारिश में भीगी सुबह
मंद मंद मुस्काती अलबेली हवा 
रंगीन फूलों से लदी टहनी का
मेरी खिड़की को रह रह कर चूमना 

अच्छा लगता है इन्हें निहारना,
मानो मिल गया हो मुझे 
मेरे अकेलेपन की एक दवा