जिंदगी के उलझे हुए पल
क्यों देते मन को छल
धोखा कभी खोयी नैनों का,
कभी पिपासु ह्रदय का
चिर असंतुष्ट आत्मा
क्यों मचाये कोलाहल
अगणित नश्वर पल
क्यों देते मन को छल ?
क्यों देते मन को छल
धोखा कभी खोयी नैनों का,
कभी पिपासु ह्रदय का
चिर असंतुष्ट आत्मा
क्यों मचाये कोलाहल
अगणित नश्वर पल
क्यों देते मन को छल ?
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