Friday, September 16, 2011

मुलाकात

समय के उस अनसुलझे अंतराल में 
इक पल जो था निद्रारहित, फिर भी अस्पष्ट  
जीवन की गति को जैसे धीमी करते हुए
किसी अनजाने से यूँ ही कुछ पूछने को 

अचानक मन को विवश पाया

उस राहगीर को शायद मैंने
पहले भी कहीं देखा था
सपनों के पुराने मोहल्ले में
जहां मैं अक्सर जाया करता था,
जहां आज भी
कभी कभी टहल लेता हूँ,
उसके किस्से सुनने को ...
या फिर हवाई जहाज़ की 
खिड़की वाली सीट पे,
सुन्दर
आँखों से बाहर चाँद
तलाशने वाली, जिससे मैंने
फिर से मिलने का वादा किया था!


मुझे संदेह हुआ, की हो ना हो
मैं उससे पहले मिला ज़रूर हूँ

फ्रेंच में जिसे कहते हैं "देजा व्हू"!!
हो सकता है वह मेरा भ्रम था
मायावी जगत का मात्र एक छल था ...
 
(असम्पूर्ण)

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