प्रातःकाल, अर्ध-जागृत लोचन
व्यतीत समय, विस्मित मन
प्रतिदिन, मानो एक मिश्रण
कुछ नूतन, कुछ पुरातन
हिमाच्छादित पर्वत शिखर
जैसे दे रहे हों निमंत्रण,
स्वच्छ, नीला गगन
और कुछ घुमंतू श्वेत बादल
टहनियों पे सज्जित नवजात कोंपल
सुगन्धित समीर, कुछ गीत सरल
गतिमान त्रुटिहीन कालचक्र,
मध्यान्न, फिर अपराह्न का आगमन
धुप का नरम स्पर्श
क्षणिक सुख, अस्थिर हर्ष
ज्योत्स्ना-स्नात काया ,
पर अतृप्त ह्रदय,
अगोचर मन,
ढूंढे प्रश्रय
पुनः पुष्पित पृथ्वी,
और प्रकृति का पुनर्जन्म
लाता एक विचार सतत
कि जीवन अनवरत, समय अनंत
कभी शीत, कभी वसंत
- तापस, २३ मार्च २०११